टोक्यो २०२१ ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन शानदार रहा जिसमें भारतीय खिलाड़ियों ने कई पुराने रिकॉर्ड तोड़कर इतिहास रचा| जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने अपने स्वर्णिम प्रदर्शन के साथ देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया| भारत ने विभिन्न खेलों में सात पदकों के साथ अपना ओलंपिक अभियान समाप्त किया| भारतीय खिलाडियों ने २०१२ में लंदन ओलंपिक में जीते छह पदकों का रिकॉर्ड तोड़कर इतिहास रचा|
एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदक के साथ, भारत ने टोक्यो ओलंपिक को इतिहास में अपने सबसे सफल अभियानों में से एक में बदल दिया| स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा, रजत पदक के विजेता मीराबाई चानू तथा रवि कुमार दहिया, कांस्य पदक विजेता पी वी सिंधु, लवलीना बोरगोहेन, बजरंग पुनिया एवं भारतीय हॉकी टीम भारत के सात रत्न माने जा रहे हैं|

इस जीत को हासिल करने के लिए खिलाड़ियों ने कई चुनौतियों का सामना करते हुए कड़ी मेहनत भी की है|
नीरज चोपड़ा जनवरी २०२० से जून २०२१ के दौरान १७ महीनों तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेले थे|
साइखोम मीराबाई चानू ने दिसंबर २०१९ से अप्रैल २०२१ तक कोई भी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया था|
पी वी सिंधु ने मार्च २०२० से ओलंपिक खेलों की शुरुआत तक पाँच प्रतियोगिताओं में भाग लिया|
उसी दौरान, लवलीना बोरगोहेन ने अर्जुन अवॉर्ड में मिली धनराशि से अपनी माँ के किडनी का इलाज कराया|
रवि कुमार दहिया टोक्यो में जब मैट पर कुश्ती लड़ रहे थे, हरियाणा में उनके गाँव के स्थानीय प्रशासन ने बिजली की विशेष व्यवस्था की जिससे उनके माता-पिता उनका खेल देख सकें|’
जून में बजरंग पुनिया को घुटने में गंभीर रूप से चोट लगी थी जिसके कारण ओलंपिक से पहले वे बीस दिनों तक मैच से दूर रहे| यहाँ तक की उन्होंने ओलंपिक के सभी मुकाबले चोटिल घुटने के साथ ही खेला|
भारतीय पुरुष हॉकी टीम पिछले डेढ़ साल से बेंगलुरु के एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र में अभ्यासरत रही और अपने परिवार के संग कुछ ही दिन बिताए|
इस तरह सारी चुनौतियों को पार करते हुए भारतीय खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया| वर्तमान स्थिति में भारत ऐसे दौर स गुज़र रहा है जहाँ पर खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधा और प्रशिक्षण देना मुश्किल था| फिर भी खिलाड़ियों ने अपनी लगन, मेहनत, निश्चय और धैर्य से जीत हासिल की वह सराहनीय है| १२० सालों में ऐसी सफलता दिलाने के लिए भारत को सात रत्नों पर गर्व है|