टोक्यो ओलम्पिक में हरियाणा में पानीपत के पास खंडारा नामक गांव के एक साधारण किसान के बेटे नीरज चोपड़ा ने पुरुषों की भाला फेंक प्रतियोगिता को जीत कर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा लिया है। ये पिछले 120 वर्षों की अवधि में ऐसे पहले व्यक्ति तथा हमारे भारत के पहले एथलीट हैं जिन्होंने ट्रैक एंड फील्ड अनुशासन में ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता है। इन्होंने अपने दूसरे ही प्रयास में 87.58 मीटर के थ्रो के साथ पुरुषों की भाला फेंक प्रतियोगिता में ऐतिहासिक जीत हासिल की है।
इससे पहले भारत ने ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिताओं में अपना एकमात्र पदक वर्ष 1900 में जीता था। यह पदक ब्रिटिश भारतीय नॉर्मन प्रिचर्ड द्वारा जीता गया था जिसमें उन्होंने दो रजत पदकों को अपने नाम किया था।
सभी एथलीटों में 87.03 मीटर थ्रो के साथ ही अपने पहले प्रयास में नीरज चोपडा प्रथम स्थान पर रहे। इन्होंने अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर थ्रो के साथ ही अपने प्रदर्शन को और भी अच्छा किया फिर इनका तीसरा प्रयास बाकी दोनों प्रयासों से कुछ कम 76.79 मीटर का रहा। इसके बाद इनके चौथे और पांचवें प्रयास कुछ खास अच्छे नहीं रहे। इसके बाद इन्होंने इन दोनों मौकों पर इनकी दूरियों को गिनती न हो पाए इसलिए इन्होंने जानबूझ कर लाइन को पार करने की कोशिश की। अपने मॉन्स्टर थ्रो के आधार पर अपने दूसरे ही प्रयास में नीरज राउंड 5 के अन्त तक सर्वश्रेष्ठ भारतीय थ्रोअर बने रहे। जिस कारण ये अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के चलते स्वर्ण पदक विजेता घोषित किए गए।